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जिस मिट्टी में जन्म लिया उस मां को बांट नही सकता

देश बाटने वाले तो कुछ अंग्रेजो के हेटे थे। जो हंसकर बलिदान हुए वो भारत मां के बेटे थे।। अमन आपसे प्रेरित होता नित्य कर्तव्य के पथ पर। जैसे कोई योद्धा चढ़ता धर्म समर के रथ पर।। मै पुरखों के बलिदानों को व्यर्थ नही जाने दूंगा। मै सकुनी मामाओं को स्वांग नही रचाने दूंगा।। देखूं कितना दम है तुममें सुनलो तुम्हे सुनाऊंगा। सदा सनातन में जन्मा में हूं सदा सनातन गाऊंगा। और सनातन में क्या दम है तुम सबको दिखलाऊंगाके चक्र सुदर्शन धारी कृष्णा ने गीता उपदेश दिया जो। श्री राम ने धर्म संकटों में धर्मोपदेश दिया जो।।। वही धर्म और वही कर्म मै लेखन में दिखलाऊंगा। जैसे सूर्य नही थकता है वैसे ही डट जाऊंगा जिस मिट्टी में है जन्मबीके लिया उस मां को बांट नही सकता। भूखा मरना मुझे गंवारा जूते चाट नही सकता। गांडीव हाथ में लेकर जैसे अर्जुन रण में कूदे थे। एक अकेला अर्जुन उस पर सौ सौ कौरव जूझे थे।। वैसे ही मै निकल पड़ा हूं कलम हाथ में लेकर के। काव्यकुंड के महायज्ञ में शब्द हव्य में देकर के।। शब्द मात्रा छंद ज्ञान की रचना केवल दासी है। जिसका चित्त शुद्ध होता है उसके हृदय में काशी है।। चाहे कोई ज्ञानी आए ज्ञान नही मै म

हम पहरेदार कमल के हैं

मैं दरबारी कवि नही जो बिक जाता हो कौड़ी में। मेरी कलम तोड़ने वाली दम है नही हथौड़ी में।। जो महायुद्ध हुआ भारत में उसका पूरा रण हूं। भारतवासी जितने मेरे सबका मैं उच्चारण हूं।। है ऐसी कोई हवा चली जो देश जलाने को चाहे। जो शांतिदूत से छल करके परिवेश मिटाने को चाहें।। ऐसी हवा हवा ही क्या आंधी से टकरा जाऊं। ऐसे कई बवंडरों से क्या यूं ही मैं घबरा जाऊं।। ये हवा बवंडर तो साधारण हम तूफान रोकने वाले हैं। सागर के मंथन का जहरीला उफान रोकने वाले हैं।। हम शिव शंकर से प्रलयंकर हमको देते वर गंगाधर। हम अपनी कविता में गाते जय शिव शंकर जय हर हर हर।। हम उन सबका रथ मोड़ेंगे जो गद्दार वतन के हैं। हमको हलके में मत लेना हम पहरेदार कलम के हैं।।       कवि अमन शुक्ला शशांक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना akhindipoetry@gmail.com

यार सारे हैं मेरे तूफानी

यार सारे मेरे तूफानी हैंअरे मुझको तो यारी निभानी है।इक सज्जन मिले थे मुझे खानदानी।वो कहने लगे इक गल है बतानी।।लफंगे हैं तेरे सभी दोस्त सुनले।रहना बचके इनसे मेरी बात गुनले।।हैं रोटी सेंकू ये।लगते हैं फेंकू ये।।दिखते हैं लुच्चे ये।लगते हैं तुच्चे ये।।यार सारे हैं तेरे ससुर नाती।अरे दुनिया ये हमको है भड़काती।।*तो तूने क्या कहा*यारों की यारी दिखानी हैं।मुझको तो यारी निभानी है।।इनसे शुरू होती इनपे खतम होती।रिश्ता है ऐसा जैसे बोतल में रम होती।।यार सारे मेरे तूफानी हैं।हमको तो यारी निभानी है।।हैं नीचा दिखाती सभी रिश्तेदारी।मुसीबत में आती है सिर्फ काम यारी।।सुख में साथ देते है दुःख में साथ देते हैं।जब भी मैं भटका मुझे थाम लेते हैं।।मेरे यारों की ऐसी कहानी है।अरे हमको तो यारी निभानी है।।जैसे भोले बच्चे ये हैं दिल के अच्छे हैं।नही धागे कच्चे ये हैं दिल के सच्चे हैंजब भी बुलाता हूं ये दौड़े आते हैं।जब रूठ जाता हूं मुझको मनाते हैं।।केसर की खुशबू से ये जाफरानी हैंअरे हमको तो यारी निभानी है।।

अमन शुक्ला शशांक - देहरादून

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तिरंगा

मै सदा प्रणाम करता हूँ इस तीन रंग रंगे को। शीष नवाकर निकलता हूँ घर से मै तिरंगे को। ये शीष झुकता है तो झुकता वतन के चरणों में। ग़द्दारी न रक्त में मेरे न ही है आचरणों में। आचरणों में हमने तो बस देशभक्ति ही पाई है। हूँ देशभक्ति को लिखने वाला महिमा देश की गाई है।। न शत्रु से हूँ डरने वाला हैं सिंघवाहिनी मेरी माई । हम शीष कटा सकते हैं पर न दुश्मन को न पीठ दिखाई।। हम उस कुल के वंशज हैं जिसने हैंहैं कुल का नाश किया। जिसने धर्म की रक्षा की अधर्मियों का नाश किया।। है पराकाष्ठा विश्वगुरु की कभी नही मिटने वाली। हिन्द की छवि न ही है धूमिल न ही दिखती है काली।। इस पर दाग लगाने वालों नजरें तेरी काली हैं। कुसंस्कार और नजरें तुमने चमगादड़ सी पाली हैं।। पूर्ण मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित     अमन शुक्ला-शशांक     लखीमपुर खीरी,यूपी       9721842302