तिरंगा

मै सदा प्रणाम करता हूँ इस तीन रंग रंगे को।
शीष नवाकर निकलता हूँ घर से मै तिरंगे को।
ये शीष झुकता है तो झुकता वतन के चरणों में।
ग़द्दारी न रक्त में मेरे न ही है आचरणों में।
आचरणों में हमने तो बस देशभक्ति ही पाई है।
हूँ देशभक्ति को लिखने वाला महिमा देश की गाई है।।
न शत्रु से हूँ डरने वाला हैं सिंघवाहिनी मेरी माई ।
हम शीष कटा सकते हैं पर न दुश्मन को न पीठ दिखाई।।
हम उस कुल के वंशज हैं जिसने हैंहैं कुल का नाश किया।
जिसने धर्म की रक्षा की अधर्मियों का नाश किया।।
है पराकाष्ठा विश्वगुरु की कभी नही मिटने वाली।
हिन्द की छवि न ही है धूमिल न ही दिखती है काली।।
इस पर दाग लगाने वालों नजरें तेरी काली हैं।
कुसंस्कार और नजरें तुमने चमगादड़ सी पाली हैं।।

पूर्ण मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
    अमन शुक्ला-शशांक
    लखीमपुर खीरी,यूपी
      9721842302

Comments

Popular posts from this blog

सड़ा हुआ कानून

नेताओं की नीचता

जिस मिट्टी में जन्म लिया उस मां को बांट नही सकता