मै सदा प्रणाम करता हूँ इस तीन रंग रंगे को। शीष नवाकर निकलता हूँ घर से मै तिरंगे को। ये शीष झुकता है तो झुकता वतन के चरणों में। ग़द्दारी न रक्त में मेरे न ही है आचरणों में। आचरण...
सत्ता का है चमत्कार और सत्ता की प्रभुताई है। गलियारों से खींच के मुझको संसद तक ले आई है।। लिखना शुरू किया था मैंने भारत देश की माओं से। बूढ़ी माँ की आँशू और भारत की सीमाओं से।...