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सारे आशिकों का इंतकाल हो जाए।

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तेरे होंठ आज सुर्ख़ लाल हो जाए। मेरे दिल को तेरा मलाल हो जाए।। तेरी ख़ामोश पलकें झुक के जब उठें। सारे आशिकों का बस इंतकाल हो जाए।। अमन शुक्ला शशांक

सड़ा हुआ कानून

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अब तक अदालतों की कालाबाजारी पर से कवियों का ध्यान कुछ भटक सा गया था लेकिन अब और नही।  अदालतों के चक्करों में बीत जाती सारी उम्र। न्याय के लिए यहां पे बीत जाती सारी उम्र।। लगता फैसले के पहले  इंसा मर जाएगा। किंतु कोई आशा नहीं न्याय मिल पाएगा।। अदालतों की कुर्सियां हैं धूल के चपेट में। आम आदमी है पेशकारों  की लपेट में।। नही कोई बात न्यायाधीश को बताने दें। अधिवक्ता के बिना जो कोर्ट में न आने दें।। शर्मसार संविधान को किए हुए हैं वो। 20 या पचास रूपये में बिके हुए हैं जो। न्याय- व्याय ,काले धंधे, बस यही सीख मिले। 20 या पचास रूपये देके जब तारीख मिले।। ऐसा नहीं न्यायाधीशों को पता नही है ये। लेखनी कवि की फालतू की कथा नही है ये।। चूस चूस खून अधिवक्ता हुए मालामाल।। (चक्कर काट आदमी होता रोज ही हलाल।) तारीख पे तारीख यहां मिलती है सालों साल। बेगुनाहों का यहां पे होता बुरा हाल है। माफियाओं को जेलों में मिलती फ्राई दाल है।। विष के समान है माहौल परिवेश का।। ऐसा घिसा पिटा है कानून मेरे देश का। ऐसे घिसे पिटे नियमों में सुधार कीजिए। कानून के काले पन्ने फाड़ फेंक दीजिए।। हर इक धार...

राजधानी

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दुनिया के सब देशों की रजधानी देखो सुंदर है। रजधानी में घटने वाली सभी कहानी सुंदर हैं। रजधानी के रखरखाव का इनसे सीखो कभी तरीका। लंदन देखो पेरिस देखो चाहे देखो अमरीका।। इन देशों के नेताओं में भी तो झगड़ा रहता है। लेकिन उनके झगड़ों में भी देश संवरता रहता है।। सब देशों की रजधानी तुम देखो जगमग होती है। अपनी दिल्ली सबसे पीछे बैठी बैठी रोती है।। सभी व्यवस्थाएं दिल्ली की जैसे दारू का क्वाटर हों। दिल्ली की हालत है ऐसी जैसे सड़े टमाटर हों। कालनेमि ने अन्ना के अनशन में वादा कर डाला। दिल्ली की पूरी जनता की बुद्धि को था हर डाला।। जिसने दिल्ली के लोगों की आंखों में  मिट्टी डाली। वादों में पानी बिजली से आंखों पे पट्टी डाली।  उसने दिल्ली नर्क बना दी देखो बोल रहा हूं मैं। सब देशों रजधानी से दिल्ली तोल रहा हूं मैं।। जो घर घर पानी देने का वादा बड़ा किया था जी। दिल्ली की आंखों में जो सपना खड़ा किया था जी।। कजरी ने उन कजरीले आंखों के सपने जला दिए। दिल्ली के अस्तित्व पुराने जो कुछ थे वो मिटा दिए। झीलें घर घर पहुंचाकर अब  स्वच्छ हवा वो खड़ा लिए। जिसने दारू के ठेकों पर देखो बच्चे पढ़ा दिए।। ऐसे ...