कर्मों का फल
अच्छाई नही मिलती है बुराई मिल जाती है।
अच्छाई नही खिलती है बुराई खिल जाती है।।
बुराइयों के पेड़ जैसे ऊँचे देवदार हैं।
जितने भी बुरे व्यक्ति दिखते उदार हैं।।
फूलते हैं फलते हैं और बढ़ते जाते हैं।
नित नई ऊंची ऊँची सीढ़ी चढ़ते जाते हैं।।
सीढियां गुनाह की हैं फिर भी ये तरक्की है।
इनकी बड़ी बड़ी बातें दुनिया हक्की बक्की है।।
ऐसा कहने वाले व्यक्ति क्यों ये भूल जाते हैं।
मरने के बाद सब कुछ यही छोड़ जाते हैं।
इसी भू पे कितनी बार हो चुके हैं धर्म युद्ध।
गुनाहों के सभी मार्ग हो चुके हैं अवरुध्द।।
द्रौपदी की साड़ी खींची किंतु खींच पाए न।
धर्म से अधर्म युद्ध कभी जीत पाए न।।
एक माँ का जीवन भर का तप भी हार जाता है।
वज्र का हुआ था जो द्रयोधन मारा जाता है।।
आकाँक्षाएँ जब कभी राज पाट पाती हैं।
सत्ता यारों व्यक्ति की बुद्धि चाट जाती है।।
सत्ता के मद में इंद्र भी हुए थे चूर।
इंद्र वाले पद से वो भी हो गए थे दूर।
सबका जीवन दाता जो है जिसको चढ़े सिंदूर।
अभिमान उसका भी हो गया था चूर चूर।।
कर्म के आधार पर ही जवाब देती है।
सृष्टि एक एक व्यक्ति का हिसाब लेती है।।
अमन शुक्ला शशांक
पचपेड़वा-लखीमपुर-खीरी
9721842302,6386998171
akshukla7890@gmail.com
Kash aisa ho pata
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