कर्म कर्ता के मिले हैं

प्रेम दीपक टिक न पाया झोंका बड़ा झकझोर था
बगावतों का मुकुट धर शीश सराबोर था।
हमने सहन सब कुछ किया तेरे लिए बस मुस्कुराकर।
बात गैरों की रही सबकुछ किया इग्नोर था।।
झूठ की बुनियाद पर रिश्ते नहीं टिकते कभी।
तुम सम्हल सकते भी थे जब तुम्हारा दौर था।।
किन्तु तुमने क्या किया बस चुगलियों पे चुगलियां।
तुम नही थी घर में मेरे मंथरा का जोर था।।
मंथराएं काम अपना कर गईं सब स्वार्थ में।
भूल जाओ अब जो आलिंगनों का पोर था।।
पछताएगा कौन ये बस समय के गर्भ में है।
कर्म कर्ता के मिले है भाग्य ये सिरमौर था।।
डॉ.अमन शुक्ला शशांक

Comments

Popular posts from this blog

सड़ा हुआ कानून

सैनिकों का पुण्य।

गऊ रक्षा