परशुराम
उसको हल्के में मत लेना जो नारायण अंशी हो।
अंश परमब्रह्म का हो ऋषिकुल ब्राम्हण वंशी हो।।
खुद शिव शंकर जिनके गुरु हुआ करते हों।
सार सभी वेदों का जो अपने माथे धरते हों।।
जिसके चलने से ही केवल धरती थर थर करती हो।।
जिसके पैरों की रज अवनी अपने माथे धरती हो।
जिसने अपनी पितृ भक्ति में शीश मातु का काट दिया।
मातृभक्ति में जिसने धरती से असुरों को छांट दिया।।
जिसने अपने पौरुष से विश्व सदा जीता जो।
जिसका फरसा अरिदलों का रक्त सदा पीता हो।।
दयाधर्म ऐसा जो जीता सब दान दे दिया।
पुनः क्षत्रियों के हाथों में धर्म ध्वजा सोपान दे दिया।।
ऐसे महापुरुषों का खूब बखान किया करता हूं।
अपने लेखन में उनका सम्मान किया करता हूं।।
ऋषि अत्री के घर में भी तो एक अवतारी राम हुआ।
शिव से प्राप्त किया जब परशु तब है परशुराम हुआ।।
Comments
Post a Comment