मेरी कविता
मां वाणी से कविता को आरम्भ किया करता हूं मैं। भारत के जयघोषों से प्रारम्भ किया करता हूं मैं।। सद्पुरुषों का खूब बखान किया करता हूं कविता में। और भारती का गुणगान किया करता हूं कविता में।। जब मेरे अंतस की ज्वाला जलती है तब लिखता हूं। भारत मां की साल दुसाला जलती है तब लिखता हूं।। क्रांति सदा लिखता हूं, मैं सतरंगी गीत नहीं लिखता।। और प्रेयसी के पैरों का मैं संगीत नही लिखता। मैं कविता में लिखता हूं केवल वीर सपूतों को। भारत मां के सच्चे प्रहरी राष्ट्र के रक्षक दूतों को।। अशफ़ाकउल्ला , राजगुरु ,और भगत को लिखता हूं। सोनचिरैया वाले खोए स्वर्ण,रजत को लिखता हूं।। कोई रोक नही सकता है आईने को दिखने से। कोई रोक नही देश भक्ति को लिखने से।। मैं लिखता हूं भारत मां की बिंदी को। मैं लिखता हूं जन भाषा को हिन्दी को।। शर्म कभी न आती होगी आतंको के सागर को। शर्म कभी न आती होगी जननी के सौदागर को।। कोई चीरहरण करता है भारत मां के दामन का। कोई रूप बना लेता है गद्दारी में वामन का।। मैं ऐसे गद्दारों की कांख में चुभता तिनका हूं नींद उड़ा देता हूं उनकी आंख में चुभता तिनका हूं।। मेरी कविता टकराती है गिद्धो...