वीर बली वो बहुत ही बुद्धिमान था ।
वो क्रांतिवीर देश का सपूत वो महान था।।
डरती थी पूरी अंग्रेजी हुकूमत जिससे।
भारती का लाल चन्द्रशेखर आज़ाद था।।
अमन शुक्ला शशांक
अब तक अदालतों की कालाबाजारी पर से कवियों का ध्यान कुछ भटक सा गया था लेकिन अब और नही। अदालतों के चक्करों में बीत जाती सारी उम्र। न्याय के लिए यहां पे बीत जाती सारी उम्र।। लगता फैसले के पहले इंसा मर जाएगा। किंतु कोई आशा नहीं न्याय मिल पाएगा।। अदालतों की कुर्सियां हैं धूल के चपेट में। आम आदमी है पेशकारों की लपेट में।। नही कोई बात न्यायाधीश को बताने दें। अधिवक्ता के बिना जो कोर्ट में न आने दें।। शर्मसार संविधान को किए हुए हैं वो। 20 या पचास रूपये में बिके हुए हैं जो। न्याय- व्याय ,काले धंधे, बस यही सीख मिले। 20 या पचास रूपये देके जब तारीख मिले।। ऐसा नहीं न्यायाधीशों को पता नही है ये। लेखनी कवि की फालतू की कथा नही है ये।। चूस चूस खून अधिवक्ता हुए मालामाल।। (चक्कर काट आदमी होता रोज ही हलाल।) तारीख पे तारीख यहां मिलती है सालों साल। बेगुनाहों का यहां पे होता बुरा हाल है। माफियाओं को जेलों में मिलती फ्राई दाल है।। विष के समान है माहौल परिवेश का।। ऐसा घिसा पिटा है कानून मेरे देश का। ऐसे घिसे पिटे नियमों में सुधार कीजिए। कानून के काले पन्ने फाड़ फेंक दीजिए।। हर इक धार...
भारतीय राजनीति कौरवों सी हो गई। लोक लाज नेताओं की जाने कहाँ खो गई।। भूखे भेड़िए हो जैसे सड़ा मांस नोचते। वैसे एक दूसरे पे सभी कीचड़ झोंकते।। चीखें गूँजे संसद में बस म्याऊँ म्...
देश बाटने वाले तो कुछ अंग्रेजो के हेटे थे। जो हंसकर बलिदान हुए वो भारत मां के बेटे थे।। अमन आपसे प्रेरित होता नित्य कर्तव्य के पथ पर। जैसे कोई योद्धा चढ़ता धर्म समर के रथ पर।। मै पुरखों के बलिदानों को व्यर्थ नही जाने दूंगा। मै सकुनी मामाओं को स्वांग नही रचाने दूंगा।। देखूं कितना दम है तुममें सुनलो तुम्हे सुनाऊंगा। सदा सनातन में जन्मा में हूं सदा सनातन गाऊंगा। और सनातन में क्या दम है तुम सबको दिखलाऊंगाके चक्र सुदर्शन धारी कृष्णा ने गीता उपदेश दिया जो। श्री राम ने धर्म संकटों में धर्मोपदेश दिया जो।।। वही धर्म और वही कर्म मै लेखन में दिखलाऊंगा। जैसे सूर्य नही थकता है वैसे ही डट जाऊंगा जिस मिट्टी में है जन्मबीके लिया उस मां को बांट नही सकता। भूखा मरना मुझे गंवारा जूते चाट नही सकता। गांडीव हाथ में लेकर जैसे अर्जुन रण में कूदे थे। एक अकेला अर्जुन उस पर सौ सौ कौरव जूझे थे।। वैसे ही मै निकल पड़ा हूं कलम हाथ में लेकर के। काव्यकुंड के महायज्ञ में शब्द हव्य में देकर के।। शब्द मात्रा छंद ज्ञान की रचना केवल दासी है। जिसका चित्त शुद्ध होता है उसके हृदय में काशी है।। चाहे कोई ज्ञानी आए ज्ञान नही मै म...
बहुत खूब
ReplyDeleteThanku
DeleteBeautiful
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